
हमारी गुरुकुलीय शिक्षा परम्परा में शिक्षा, भाषा बोध, विषय बोध या सूचनाओं का संग्रह मात्र नहीं है, अपितु इन सबके प्रामाणिक बोध के साथ स्वयं में सन्निहित अनन्त ज्ञान, अनन्त संवेदना, असीम सामर्थ्य, शौर्य, वीरता, पराक्रम एवं पुरुषार्थ को जानकर, जगाकर, सही दिशा में लगाकर परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के लिए श्रेष्ठतम योगदान देना है। गुरुकुल में विद्याभ्यास के साथ-साथ योगाभ्यास एवं श्रेष्ठ व्रतों के अभ्यास से आत्मानुशासन, आत्म-रूपान्तरण, आत्मप्रेरणा, आत्मस्पर्धा, आत्मबोध से आत्मा में सन्निहित बीजरूप सामर्थ्य को इतना विकसित कर लेना है कि ब्रह्माण्डीय समस्त ऊर्जाएँ हमारे पिण्ड से अभिव्यक्क्त होने लगें। शरीरबल, मनोबल, बुद्धिबल एवं आत्मबल को पूर्ण विवेक, पूर्ण श्रद्धा एवं पूर्ण पुरुषार्थ से जागृत करने हेतु गुरुकुल में श्रेष्ठतम प्रशिक्षण, श्रेष्ठतम प्रशिक्षक और श्रेष्ठतम वातावरण उपलब्ध कराया जाता है। विद्यार्थियों के ब्रेन की प्रोग्रामिंग इस प्रकार की जाती है कि वे बड़ी सोच, विकल्प रहित संकल्प, अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ के साथ अपने भीतर ऐसा वक्तृत्व, नेतृत्व, व्यक्तित्व एवं चरित्र विकसित कर एक श्रेष्ठतम विश्व नागरिक के रूप में स्वयं को गढ़ सकें और अपनी दिव्य मेधा, प्रतिभा, पुरुषार्थ एवं पराक्रम से नया सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक तंत्र स्थापित कर सकें। सामाजिक रूढ़ियों, जाति, कुल, वंश, वर्ग विशेष एवं समूहों के संगठित अनीतिपूर्ण साम्राज्यों को ध्वस्त करके सत्य, धर्म, न्यायोचित नवोन्मेष पूर्ण सृजन के नए प्रतिमान, नए उदाहरण एवं नई प्रेरणाएँ स्थापित करने में समर्थ एवं प्रखर पुरुषार्थी गुरुकुल में तैयार करने की भावी योजना है। गी।
स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल में वैदिक और आधुनिक ज्ञान का अद्भुत समन्वय है यहाँ आधुनिक विषयों के साथ सनातन वैदिक परम्परा के परिचायक वेद, दर्शन, उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता, पंचोपदेश आदि के अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था है। गुरुकुल का उद्देश्य महर्षि दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द व स्वामी दर्शनानन्द जी महाराज के सपनों व संकल्पों को साकार करना एवं भारत को वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पराधीनता से मुक्त करना है जिससे भारत पुनः परम वैभवशाली विश्वगुरु पद पर प्रतिष्ठित हो।