भारत में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और गुरु-शिष्य परम्परा का अपना एक स्वर्णिम गौरवशाली इतिहास रहा है। प्राचीन गुरुकुल अध्ययन-अध्यापन के मुख्य केन्द्र थे जहाँ विद्यार्थी आचार्य की सन्निधि में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए शिक्षित-दीक्षित हुआ करते थे। समय व कालखण्ड के प्रभाव से प्राचीन गुरुकुलों का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। तब पूज्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने गुरुकुलों के संरक्षण व नवीन गुरुकुलों की स्थापना का संकल्प लिया। पतंजलि योगपीठ उसी गुरु-शिष्य परम्परा को मानने वाला, उसका पोषक, संरक्षक व प्रचारक है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को अपना आदर्श मानने वाले स्वामी दर्शनानन्द जी द्वारा स्थापित स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल ज्वालापुर, जीर्ण अवस्था में पहुँच चुका था। इसे परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज तथा पतंजलि योगपीठ ने संजीवनी प्रदान की है।
स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल में विद्यार्थियों को इस प्रकार दीक्षित किया जाता है जिससे उनमें संस्कार विकसित हो सकें। उनका व्यक्तित्व तो बेहतर बने ही साथ ही उनके द्वारा एक स्वस्थ समाज का निर्माण भी हो सके। यहाँ विद्यार्थियों को विषयगत ज्ञान के साथ-साथ संस्कार, संस्कृति, अध्यात्म, राष्ट्रप्रेम, मर्यादा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी पुरुषार्थों में पारंगत किया जाता है। साथ ही उनकी कला कौशल व योग्यतानुसार उनका व्यक्तित्व विकसित किया जाता है।
स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल ज्वालापुर में समय-समय पर विद्यार्थियों को परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का आशीर्वाद, उनकी सन्निधि व उद्बोधन रूपी प्रसाद मिलता रहता है। वहीं उनकी संन्यास परम्परा में दीक्षित सन्यासी भाई व साध्वी बहनें निरन्तर उन्हें दीक्षित करते हैं। विद्यार्थी जीवन कच्ची मिट्टी के समान होता है। उन्हें किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। पूज्य स्वामी जी महाराज के नेतृत्व में गुरुकुल ज्वालापुर में विद्यार्थियों को विश्व नेतृत्व के लिए गढ़ा जा रहा है।
