स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल के बारे में

स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल (गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर) एक आवासीय शिक्षण संस्थान है जिसकी स्थापना विक्रम संवत् 1964 (सन् 1907) की वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) के दिन तीन बीघा भूमि पर तीन से चार ब्रह्मचारियों के साथ माँ गंगा के पावन सान्निध्य में हरिद्वार की पुण्य भूमि पर तार्किक शिरोमणि, शास्त्रार्थ महारथी, दर्शनों के मूर्द्धन्य विद्वान परम श्रद्धेय पूज्य स्वामी दर्शनानन्द जी महाराज के करकमलों द्वारा की गई।
वर्तमान में इस गुरुकुल का संचालन परम श्रद्धेय पूज्य योग ऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज एवं परम श्रद्धेय आयुर्वेद शिरोमणि पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के पावन आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन तथा पतंजलि योगपीठ के दिशा निर्देशन में वर्ष 2023 से वैदिक शिक्षा शोध संस्थान के माध्यम से किया जा रहा है।
गुरुकुल में प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा स्थापित गुरुकुलों की शास्त्रीय एवं गौरवशाली सनातन गुरु-शिष्य परम्परा और संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित किया जा रहा है। यहाँ वैदिक ज्ञान और आधुनिक शिक्षा के माध्यम से ब्रह्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के साथ सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाता है।
हमारे आदर्श

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज का संदेश
स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल में वैदिक और आधुनिक ज्ञान का अद्भुत समन्वय है यहाँ आधुनिक विषयों के साथ सनातन वैदिक परम्परा के परिचायक वेद, दर्शन, उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता, पंचोपदेश आदि के अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था है। गुरुकुल का उद्देश्य महर्षि दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द व स्वामी दर्शनानन्द जी महाराज के सपनों व संकल्पों को साकार करना एवं भारत को वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पराधीनता से मुक्त करना है जिससे भारत पुनः परम वैभवशाली विश्वगुरु पद पर प्रतिष्ठित हो।

परम श्रद्धेय आचार्य जी का संदेश
भारत में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और गुरु-शिष्य परम्परा का अपना एक स्वर्णिम गौरवशाली इतिहास रहा है। प्राचीन गुरुकुल अध्ययन-अध्यापन के मुख्य केन्द्र थे जहाँ विद्यार्थी आचार्य की सन्निधि में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए शिक्षित-दीक्षित हुआ करते थे। समय व कालखण्ड के प्रभाव से प्राचीन गुरुकुलों का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। तब पूज्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने गुरुकुलों के संरक्षण व नवीन गुरुकुलों की स्थापना का संकल्प लिया। पतंजलि योगपीठ उसी गुरु-शिष्य परम्परा को मानने वाला, उसका पोषक, संरक्षक व प्रचारक है।

स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती जी का संदेश
महान दार्शनिक, शास्त्रार्थ-महारथी तथा प्रगल्भ-लेखक स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती का जन्म माघ कृष्ण-दशमी सम्वत् 1918 विक्रमी (सन् 1861ई0) को लुधियाना जिलान्तर्गत ‘जगरावां’ नाम ग्राम में मौद्गल्य-गोत्रीय सारस्वत ब्राह्मण पं. रामप्रताप के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम हीरादेवी था। पहले इनका नाम ‘नेतराम’ था। जो बाद में ‘कृपाराम’ हो गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पिताश्री के सान्निध्य में सम्पन्न हुई, जिनसे उन्होंने फारसी के गुलिस्तां बोस्तां आदि ग्रन्थ तथा व्याकरण-ग्रंथ सिद्धान्तकौमुदी का अध्ययन किया।