Swami Darshanand Gurukul

महाविद्यालय के सम्बन्ध में विचार

मैं महाविद्यालय ज्वालापुर की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।

- महात्मा गाँधी (अप्रैल, 1920 ई.)

मैं इस शिक्षा संस्था (गुरुकुल ज्वालापुर) की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।

- पं. गोविन्दवल्लभ पन्त, मुख्यमंत्री, उ.प्र. सरकार 13 अप्रैल 1950 ई.

गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर एक अच्छा कार्य कर रहा है। यह गुरुकुल निःस्वार्थ सेवी विद्वानों तथा कर्मठ कार्यकर्त्ताओं द्वारा चलाया जा रहा है। यह उत्तम कार्य कर रहा है।

- क.मा. मंुशी, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश 17 अप्रैल 1953

बालक-बालिकाओं को संस्कृत के मूल्य से परिचित कराना चाहिए। शिक्षा का माध्यम यदि महाविद्यालय जैसी संस्थाओं में हो तो अत्युत्तम है। विज्ञान के नये-नये शब्दों का समावेश संस्कृत में उदारता से करना चाहिए।

- श्री मा0 डॉ. चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख शिक्षामंत्री , भारत सरकार 15 अप्रैल 1957 ई.

ज्वालापुर महाविद्यालय एक पवित्र और आदर्श स्थान है।

- पं. जवाहरलाल नेहरु, प्रधानमंत्री भारत सरकार 13 अप्रैल 1959

श्री नरदेव जी की तपस्या और लगन का फल है कि इतनी कठिनाईयों के होते हुए भी इतने लम्बे अर्से तक यह संस्था समाज की सेवा करती रही है। संस्था पर और यहाँ के कार्यकर्त्ताओं और बह्मचारियों पर कुलपति की और मेरी यह कामना है कि यह संस्था निरन्तर फलती-फूलती रहे और यहाँ के निकले हुए छात्र समाज के सच्चे सेवक बनें।

- कालूलाल श्रीमाली, शिक्षामंत्री भारत सरकार 9 अप्रैल 1960 ई.

आज इस गुरुकुल में दीक्षान्त भाषण देने के लिए मुझे अवसर मिला, तब मुझे इस सुन्दर संस्था का कुछ परिचय हुआ। इस संस्था का हमेशा विकास होता रहे, यही मेरी परमात्मा से प्रार्थना है।

-मोरारजी देसाई, प्रधानमंत्री भारत सरकार 11 अप्रैल 1960 ई.

बहुत दिनों के बाद आज गुरुकुल महाविद्यालय में आकर और अपने पुराने सम्मानित सहयोगी पं. नरदेव शास्त्री जी से मिलकर परमानंद हुआ। इस सुन्दर और उपयोगी संस्था की इतनी समृद्धि और उन्नति देखकर बड़ा संतोष हुआ। पं. नरदेव शास्त्री जी का उत्साह वैसा ही है जैसा पहले था।

- श्री प्रकाश, राज्यपाल महाराष्ट्र प्रदेश दिनांक 18 सितम्बर 1960 ई.

आज जो कुछ भी देखा, उनसे बड़ी प्रेरणा मिली। जिन कठिनाइयों का सामना इस संस्था ने किया है, वह इस बात का विश्वास दिलाता है कि इसकी भाग्यरेखा अमिट है।

- तारकेश्वर सिन्हा, मंत्री भारत सरकार 11 अप्रैल 1960 ई.

मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि मैं गुरुकुल ज्वालापुर के दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित हो सका। यहाँ के कार्यकर्त्ताओं में त्याग और तपस्या की भावना है।

- कालूलाल श्रीमाली शिक्षामंत्री भारत सरकार 19 अप्रैल 1962 ई.

आज गुरुकुल ज्वालापुर देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दीक्षान्त अभिभाषण भी देने का सौभाग्य मिला। मेरी शुभकामनाएँ।

-यशवन्त चह्वाण, गृहमंत्री भारत सरकार 14 अप्रैल 1964 ई.

गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।

- वी. सत्यनारायण रेड्डी, राज्यपाल उ0प्र0 13 अप्रैल 1990 ई.

उदात्त भावनाओं, संकल्प शक्ति, निष्ठा और कर्मठता के संदेश का उद्भव इन्हीं विद्या मन्दिरों से होता है, इसी कारण से ये पूजनीय हैं, दर्शनीय हैं।

- चन्द्रशेखर, प्रधानमंत्री भारत सरकार 13 अप्रैल 1991 ई.

भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को जीवित रखकर इस संस्था द्वारा समाज की जो सेवा की जा रही है, उसका मूल्यांकन आज की भोगवादी सभ्यता नहीं कर सकती ।

-सुन्दरलाल बहुगुणा, (सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्) 14 जनवरी 1996 ई.

यह गुरुकुल विश्वविद्यालय जल्दी बनना चाहिए।

- जी.वी.जी. कृष्णमूर्ति पूर्व निर्वाचन आयुक्त, भारत सरकार 21 जनवरी 2001 ई.

महाविद्यालय के स्नातकों ने जो वेद प्रचार-प्रसार और आर्यसमाज दर्शन को जन-जन तक पहुँचाने का प्रशंसनीय कार्य किया है। उसके लिए हम सब सदा ऋणी रहेंगे।

- अमर ऐरी, प्रधान आर्यसमाज ट्रस्टी टोरंटो (कनाडा) 29 अप्रैल 2002

श्री प्रकाशवीर शास्त्री का बहुत समय से आग्रह था कि मैं गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर जाऊँ। इच्छा रहते हुए भी मुझे इसका जल्दी अवसर नहीं मिला। इस बार अप्रैल 1961 में इसके दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला। मुझे और भी अधिक खुशी इसलिए होती है, क्योंकि मेरा सम्पर्क उस समय से रहा है, जब स्व. पं. पद्मसिंह शर्मा यहाँ रहा करते थे। इसलिए यहाँ आकर पुराने संस्मरण ताजा हो गये। ऐसे स्थान हमारी प्राचीन संस्कृति के आदर्श बन सकें, आँखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। आधुनिक शिक्षण पद्धति के साथ गुरुकुल प्रणाली का समन्वय यदि हम कर सकें तो मुझे इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार के समन्वय से हमारे देश का फायदा होगा। मैं इस महाविद्यालय की दिनोंदिन उन्नति चाहता हूँ और अध्यापकों तथा छात्रों को बधाई देता हँू।

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राष्ट्रपति, भारत सरकार 20 मई 1961 ई.